बूढे सपने ! वो देखो ! गाँव की मस्जिद. आज भी नमाज़ को तरस रही है. फूलों के पेड़ - बच्चो के स्कूल, सब सुने पड़े हैं. लगता है- आज फिर काफिला आया है. सिपाहियों का दस्ता लाया है. गाओं की पखडंडियाँ फिर से उजाड़ हो गई. मौलवी की तमन्ना, फिर हैरान हो गई. फिर मन को टटोला है. जंग ने फिर से कचौला है. दर्द भी पी लिया है. अपनों से जुदा हुए- पर अरमानो को सी लिया है. खामोश आँखों ने- फिर ढूढा है सपनों को. नादान हथेलियों में- फिर तमन्ना जागी है. पर क्यूँ सरफरोश हो गई, आशायें इस दिल की. क्यूँ कपकपी लेती लौ, मोहताज़ है तिल तिल की. टिमटिमाते तारे भी, धूमिल से हैं. बारूद के धुयें में जुगनू भी, ओझल से हैं. बस करो भाई! अब घुटन सी हो रही है. न करो जंग का ऐलान फिर- चुभन सी हो रही है. बड़ी मुश्किलों से, रमजान का महीना आया है. मेरी तख्दीर की आखिरी ख्वाहिश को, संग अपने लाया है. कर लेने दो अजान फिर अमन की खातिर, बह लेने दो पुरवाई बिखरे चमन की खातिर. यूँ खून न बरसाओ ! अबकी सुबह निराली है. हर पतझड़ के बाद मैंने- देखी हरियाली है. समाप्त |
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नारायण राव
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यदि आप अपनी रचनाएँ नारायण कुंज पेज पर प्रकाशन चाहते है. तो मेल करे, तथा प्रकाशन अनुमती एवं मौलिक प्रमाण अवश्य भेजे.
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ये रचना हाल ही मे हुए बम्ब धमाकों से प्रेरित है. ये उस गाँव का हाल बताती है जिसको खाली करवा दिया गया है. क्यूंकि वहां कभी भी जंग हो सकती है. वो सारे गाँव के लोग हर दम खानाबदोश की ज़िन्दगी जीते हैं. मै सोचता हूँ हम हर बार क्या खो रहे हैं इसका ज़रा सा भी इल्म नहीं हमको. [email protected]
Read my blog and give your valuable comments - http://pradeepzpoems.blogspot.com/
Narayan ji,
Pranaam!
Yes Budhe Sapney owned and written by me...I am giving you permission for publishing only on http://narayankunj.googlepages.com. I also want you to ask me whenever you are pushing my blog content on your site. The understanding is you will showcase my blog on your website http://narayankunj.googlepages.com.
Thank you for the same. regards, Pradeep Pathak 2009/4/25
Narayan Rao <[email protected]>
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